Sunday, December 20, 2009

कविता का भूत

             ( कृपया जो लिखा है उसे ऐज़ इट इज़ पढ़ें । अपना ज्ञान बघारकर सुधरने का दुष्प्रयास न करें अन्यथा व्याकरण आपको कभी माफ़ नहीं करेगा । ) 
            खूबचंद के मोबाईल में वाइब्रेशन कम रिंगटोन बज उठी । नंबर अंजना सा था, उठाया । उधर से एक नारी स्वर बोला, शर नमश्ते ! खूबचंद ने जवाब दिया- जी नमस्कार, कहिये । उधर से जो स्वर था उसमें आलरेडी हल्का सा तीखापन था ही- शर आप खूबचंद जी बोल रहे हैं । जी हाँ, कहिये- खूबचंद मन ही मन महिला प्रशंसक मिलने की खुशी के कारण कॉर्न से पापकार्न हो चले ।
          शर, हम आपको सुने थे, देखे भी थे । आप बहुत बढियाँ कबीता गाये थे । हम आपके बहुत बड़े फैन हैं । उधर का स्वर कुछ एक्स्ट्रा तवज्जो दे रहा था ।
जी शुक्रिया ! खूबचंद ने अपनी ख़ुशी के पापकार्न को कौर्नफ्लेक्स बनने से रोकते हुए कहा । वैसे भी ऐसे वक्त पर हर व्यक्ति आम आदमी की तरह रीएक्ट करता है । शर, हम आपसे मिलना चाहती हूँ । खूबचंद ने शालीनतापूर्वक अपना पता समझा दिया और कहा आने से पहले फोन ज़रूर कर लीजियेगा ।
           दूसरे दिन सवेरे दस बजे फोन के बजाये घर की घंटी चिचिया उठीं । आवाज़ फोन की जगह साकार खड़ी थी । शर, हमको इन्फार्मेशन मिली है की आप नए लोगों को आगे बढ़ाने का काम करते हैं । हम आगे बढ़ना चाहते हैं । हम भी कबी हैं । अच्छा-अच्छा आप भी कवितायेँ लिखतीं हैं, बड़ी खुशी की बात है । क्या लिखती हैं गीत, ग़ज़ल या छंद । खूबचंद सीनियर बनते हुए बोले ।
            हमारा भाई भी कबी है । हम लोग जौएंट लिखते हैं । हम लोग अपनी एक किताब छाप लिए हैं पर आज तक विमोचन नहीं हो पाया । खूबचंद हिन्दी काव्य साहित्य के स्वर्णिम भविष्य से आश्वस्त हो चले थे । ऊपर से संयत होकर बोले- एक कविता सुनाइए । देखें आपने क्या लिखा है । वो फटाक से बोलीं- हम कबीता सुनाते हैं जिसका सीर्सक है साम-

बेवफा पती के सर पर टिल्ला बना दूंगी,
सराफत से रहेगा तो चिल्ला खिला दूंगी ।
मुर्गा बोलता है पर बलम सोता है ,
कुत्ता काटता है तो भौंक-भौंक रोता है ।

           खूबचंद ने मरियल कुत्ते की तरह दर्द भरी आवाज़ में कहा, आप कवितायेँ क्यों करना चाहती हैं ? वह बोलीं- हम लता जी और आसा जी की तरह कबीता में नाम कमाना चाहतीं हूँ । डरते-सहमते खूबचंद ने पूछ लिया की इसका शीर्षक तो शाम है पर आपकी कविता में शाम का कहीं ज़िक्र तक नहीं आया । इस बात पर उसने कहकहा लगाया - वाह शर वाह । आप कैसे कबीता लिख लेते हैं, जब आपको यही नहीं पता । खूबचंद पागल कुत्ते की तरह भौकना चाहते थे पर भीगी बिल्ली बनकर बोले- क्या नहीं पता । वह खूबचंद को समझाते हुए बोली- सीर्सक तब का लिखा जाता है जब कबीता लिखी जाती है । ये कबीता हमने साम को लिखा था इसलिए इसका सीर्सक साम है ।
           खूबचंद को लग रहा था वो पापकार्न से मखाना हो गए हैं और किसी स्पाइसी ग्रेवी वाली सब्जी में डाल दिए गए हैं । हिन्दी साहित्याकाश में एक और ऊषा की लीला छाने वाली है । खूबचंद उसकी किताब का विमोचन समारोह कराने की तैयारी में जुटे हैं ।


लेख़क- सर्वेश अस्थाना 
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Tuesday, December 15, 2009

कम्बख्त इश्क

मियां हलकान ने पाँच सौ साल पुरानी ऐतेहासिक ईमारत की दीवारों पर बड़ा सा दिल बनाया और अपनी प्रेमिका का नाम ईटाक्षरों से लिख अगले पाँच सौ सालों के लिए महफूज़ कर दिया । फिर ऐसे छाती चौड़ी की मानो मजनू के इकलौते वारिस वही हों ।
            हालाँकि यह पुनीत व साहसिक कार्य इससे पहले भी कई और मजनुओं की औलादें कर चुकी थीं । जनाब ने तो महज़ उनकी परम्परा का निर्वहन किया था ।
जनाब अब सोच रहे थे की बेवक़ूफ़ था वह शाहजहाँ जिसने ताजमहल में फ़िज़ूल का टाइम और पैसा वेस्ट किया । हमारी ही तरह अपने दादा, परदादा यानी अकबर और हुमायूँ की बनवाई किसी ईमारत पर ऐसे ही शाहजहाँ लव्ज़ मुमताज़ उकेर देते । एक सेकेंड में बरसों का काम हो जाता ।
            मियां हलकान जहाँ भी जाते हैं अपनी इस बहादुरी का प्रदर्शन ज़रूर करते हैं । शायद ही इंडिया की ऐसी कोई खुशनसीब ईमारत होगी जिस पर जनाब की नज़र-ऐ-इनायत न हुई हों । जनाब की प्रेमिका का हर दो साल में रेनोवेशन हो जाता है मगर उनकी मुहब्बत में जो घाव बेचारी इमारतों को लगे हैं वह वक्त के साथसाथ बढ़ते ही चले ही जा रहे हैं ।
अब जब से प्रेमी व प्रेमिका रखना एक फैशन की कैटेगरी में आ गया है तब से तो बेचारी इन दीवारों की शामत ही आ गयी है । पहले लोग छुपते-छुपाते दीवारों पर अपनी निशानियाँ बनाते थे । लेकिन आज हालात ऐसे हैं मानो सारी मुहब्बतें लोग दीवारें ख़राब करके ही जता पाते हों । बाकायदा काम्पेटीशन की तरह लोग दीवारों पर अपनी मुहब्बतों का पोस्ट्मार्टम करते फिर रहे हैं । अब तो बाकायदा इसका एक दिन फिक्स हो गया है जिसे वैलेंतैन डे कहते हैं ।
एक बार मियां हलकान से यह सवाल किसी ने पूछ ही लिया की अपनी मुहब्बत की सारी भड़ास तुम ऐतेहासिक इमारतों पर ही क्यों निकलते हो । अरे भाई, तुम्हारे घर पर भी तो दीवारें हैं कुछ उनको भी दिलों और तीरों से सजाओ । अपने मियां हलकान कम हाज़िर जवाब हैं, बोले… हमारा घर कौन सा मुमताज़ का मखबरा है, जिसे देखने दुनिया आती है । हमें तो अपनी मुहब्बत को वर्ल्ड फेमस करना है । बताइए ऐसे लोगों को कौन समझाए की घरवालों के सामने अपनी मुहब्बत का इज़हार नहीं कर पाते और चले हैं अपनी मुहब्बत को वर्ल्ड फेमस करने ।
काश! मुहब्बत करने वाले समझ पाते की मुहब्बत का मज़ा बनाने में होता है मिटाने में नहीं । मुहब्बत के लिए तो लोग सब कुछ कुर्बान कर देते हैं । क्या हम अपनी मुहब्बत महज़ अमूल्य ऐतेहासिक धरोहरों को ख़राब करके ही जता सकते हैं । सच्ची मुहब्बत है तो एक पौधा अपनी मुहब्बत के नाम का लगा के देखो तुम्हारा प्यार भी अमर हो जाएगा ।







लेखक- संजीव जयसवाल ‘संजय’

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Friday, December 04, 2009

घंटा भंगुर बिजली

बिजली दर्शन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलू इस प्रकार हैं-


जीवन क्षणभंगुरम च बिजली घंटा भंगुरम, ज्ञानी पुरुषस्य यह लक्ष्णम, न बिजली आने की खुशी, न जाने का ग़म ।

भावार्थ- जीवन क्षण भंगुर है और बिजली घंटाभंगुर है । अभी आयी है, अभी चली जायेगी ।कहाँ से आती है, कहाँ जाती है, बिजलीघर वालों को भी नहीं मालूम । उन्हें कुछ नहीं मालूम ।विद्वानों ने कहा है ज्ञानी पुरूष सुख और दुःख दोनों में समान स्तिथि में रहता है । ऐसी सूरत मेंज्ञानी पुरूष का यही लक्षण होता है की वह बिजली आने की खुशी न मनाये और बिजली जानेका ग़म न करे । दुनिया फानी है, बिजली आनी है, जानी है । संसार दुःख है, ऐसा जिनज्ञानियों नें कहा है, उन्होंने बिजली के कष्ट को बहुत भोगकर ही कहा है ।

बिजली अनुपस्थितम किम गम, पूर्व जन्मात संस्कारत कर्म फल का रिज़ल्टम, यही विचारात ।

भावार्थ - बिजली अगर अनुपस्थित है, तो किस बात का ग़म । यह तो पूर्व जन्म के संस्कार हैं। तूने पिछले जन्म में बड़े पाप किए होंगे, तभी तुझे किसी उत्तर भारतीय शहर मेंजीवन-यापन करना पड़ रहा है । ऊपर नरक में पानी और बिजली की सप्लाई की परेशानी कोदेखते हुए ऊपर वाले को नरक में 'नो वैकेन्सी' का बोर्ड टांगना पड़ता है । ऐसे सबको उत्तरभारत के बिजली-पानी विहीन शहरों में जन्म लेकर अपने पूर्व जन्म के कर्मों को काटना पड़ताहै । तेरे सारे पुराने पाप कट जायेंगे, तो फिर तू अमेरिका या ब्रीटेन के किसी बिजली युक्त शहरमें जन्म लेगा । ज्ञानियों नें कहा है की कर्म तो काटने पड़ते हैं । यही समझकर तू अंधेरे में, पसीने-पसीने होते हुए पूर्व जन्म के दुष्कर्मों के लिए क्षमा मांग ।

बिजली गायबम, गहन चिंतनम, मारम धाडम विकट विजयं यही स्टोरी ऑफ़ सिकंदरम बाबरम् अकबरम

भावार्थ- ज्ञानी कहते हैं की बिजली की अनुपस्तिथि में कई तरह के धाँसू विचार उपस्थित होजाते हैं । बिजली गायब है, अँधेरा है, हवा है, हवा नहीं चल रही है, पंखा नहीं चल रहा है । ऐसेमें दिमाग में विकट गरमी भर जाती है और बंदा युध्दोत्सुक हो उठता है, विकट युद्धअभियानों की तरफ़ निकल चलता है और विजयश्री का वर्णन करता है । जैसे बाबरअफगानिस्तान जैसे ठंडे मुल्क से इंडिया आया था, यहाँ की गरमी में युध्दोत्सुक हो उठा औरविकट मारधाड़ मचाकर मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की । ऐसे ही राजस्थान में जन्मे अकबरपर गरमी ने असर दिखाया और परिणाम इतिहास में दर्ज है । अगर उस दौर में बिजली, पंखे, ऐसी होते, तो ये सब आराम पड़े ठडंक में सोये पाये जाते । इतिहास में इनका नाम दर्ज न होपाता ।

सो हे जातक, बिजली की अनुपस्तिथि की चिंता न करते हुए उसके गायब होने केसकारात्मक पक्षों पर विचार करें ।


लेखक- आलोक पुराणिक
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Tuesday, December 01, 2009

क्योंकि मैं एक्सपर्ट हूँ

सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर-नीचे क्यों जाता है ? 
जवाब- यह कोई नहीं जानता है पर सब बताते हैं । बताने के पैसे मिलते हैं ।
सवाल- ऐसा क्यों होता है ? 
जवाब- क्योंकि ऐसा करना एक्स्पर्टतत्व कहलाता है ।

सवाल- ऐसा करना एक्स्पर्टतत्व क्यों कहलाता है ? जवाब- क्योंकि एक्सपर्ट वो होता है, जो सूट-पैंट पहनकर शेयर बाज़ार के ऊपर-नीचे जाने की व्याख्या करता है ।
सवाल- जो सूट-पैंट नहीं पहनता, क्या वह एक्सपर्ट नहीं होता ? जवाब- जो सूट-पैंट नहीं पहनता, वह एक्सपर्ट नहीं निवेशक होता है, जिसकी रकम, सूट-पैंट समेत शेयर बाज़ारमें घुस चुकी होती है । निवेशक के पास सूट-पैंट नहीं सवाल होते हैं । बवाल होतें हैं । चिंताएं होतीं हैं ।
सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि वह उस टाइम नीचे नही जा रहा होता है । मतलब वह गढ्ढे में नहीं जा रहा होता है ।


सवाल- शेयर बाज़ार नीचे क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि वह ऊपर नहीं जा रहा होता है ।
सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि उस टाइम डॉलर गिर रहा होता है ।
सवाल - शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि उस टाइम डॉलर चढ़ रहा होता है ।
सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि उस टाइम डॉलर न चढ़ रहा होता है, न गिर रहा होता है ।


सवाल- एक ही सवाल के जवाब अलग -अलग क्यों हो सकते हैं ? जवाब- एक्सपर्ट एक ही सवाल के जवाब एक ही बार में अलग-अलग दे सकता है । एक्सपर्ट-एक्सपर्ट होता है ।
सवाल- शेयर बाज़ार गिरा क्यों ? जवाब- क्योंकि इंडोनेशिया में भूकंप आ गया ।
सवाल- शेयर बाज़ार उठा क्यों ? जवाब- क्योंकि इंडोनेशिया में भूकंप आ गया ।
सवाल- शेयर बाज़ार न गिरा, न उठा, क्यों ? जवाब- क्योंकि इंडोनेशिया में भूकंप आ गया ।
सवाल- आप हर सवाल का जवाब इंडोनेशिया के भूकंप में ही क्यों दे रहे हैं ? जवाब- एक्सपर्ट आप हैं या मैं ।


सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों गया ? जवाब- उस सीरियल की हिरोइन ने चौथी शादी करने का मन बना लिया था इसलिए ।
सवाल- अगले दिन शेयर बाज़ार फिर क्यों गिरा ? जवाब- क्योंकि उस सीरियल की हिरोइन ने चौथी शादी का मन बना लिया था इसलिए ।
सवाल- उस दिन तो शेयर बाज़ार न गिरा न चढा ? जवाब- क्योंकि उस सीरियल की हिरोइन ने चौथी शादी करने का मन बना लिया था इसलिए । सवाल- आप हर सवाल का जवाब चौथी शादी में ही क्यों दे रहे हैं ? जवाब- एक्सपर्ट आप हैं या मैं ।
बात में दम है । आप ही बताइए एक्सपर्ट आप हैं या मैं ।

लेखक- आलोक पुराणिक

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Monday, November 30, 2009

क्या कर रहे थे ?

              अंतर्राष्ट्रीय नशीला पदार्थ विरोधी संस्थान ने कहा है की हमें तमाम क्रिकेटरों की गतिविधियों की जानकारी होनी चाहिए । वे तीन महीने पहले क्या कर थे, यह पता होना चाहिए । तमाम भारतीय क्रिकेटरों ने इसका विरोध कियाहै । मैंने एक क्रिकेटर से इस सम्बन्ध में बात की, बाद में बहुत सी बातें ऑन रिकॉर्ड हो गयीं हैं, पर क्रिकेटर का नाम ऑफ़ रिकॉर्ड करना पड़ रहा है । बातचीत इस प्रकार है-

सवाल- सच में बताइए, पिछले तीन महीनों में आप क्या कर रहे थे ?
क्रिकेटर- देखिये, उस दिन मैं उस बीयर के लिए ऐड कर रहा था, नाच रहा था । उस दिन मैं उस रियलिटी शो में डांस कर रहा था, उस वाली एक्ट्रेस के साथ । उस दिन हाँ, उस दिन तो कोल्ड ड्रिंक की शूटिंग थी । हाँ, उस दिन तो मैं उस टी-शर्ट को बेच रहा था । हाँ उस दिन मैं कम्प्यूटर बेच रहा था । उस दिन चवनप्राश बेच रहा था ।

सवाल- आप यही सब बेचते हैं या कभी क्रिकेट भी खेलतें हैं ?
क्रिकेटर- कभी-कभार वह भी हो जाता है ।

सवाल- देखिये, आपको बतौर क्रिकेटर जाना जाता है और पिछले तीन महीनों से आप यह सब बेच रहे हैं ?
क्रिकेटर- देखिये, अब तो हमें भी कभी-कभार यह जान कर आश्चर्य होता है की आख़िर हमें क्रिकेटर माना जाता है। दरअसल, हम सेल्समैन हैं जो क्रिकेट खेलते हैं । अब अगर यह बात हम अंतररास्ट्रीय नशाबंदी संस्थान को बतादेंगे, तो लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे ।

सवाल- यही सोचेंगे की आप माल ज्यादा बेचते हैं और क्रिकेट कम खेलते हैं । लोगों को यह पता लगने दीजिये ।
क्रिकेटर- नहीं हम इस बात से डरते हैं की लोगों को जब यह पता चलेगा की हम सात दिनों में से छः दिन माल बेचने में बिताते हैं, तो हमारी रेप्यूटेशन डाउन हो जायेगी । वो सोचेंगे की कायदे का प्लेयर नहीं है, वरना तो सातों दिन माल बेचता ।

सवाल- फिर भी पब्लिक को यह पता होना चाहिए की आप करते क्या हैं ?
क्रिकेटर- क्रिकेटर इस देश में दो ही काम कर रहा होता है, अगर ठीक खेल रहा होता है तो तमाम इश्तेहारों के ज़रिये माल बेच रहा होता है । वरना ऐड वालों और पब्लिक की गालीयाँ झेल रहा होता है । 20-20 के बाद तो सीन और बदल गया है । जो खिलाड़ी 20 से कम आईटम बेच रहा होता है, उसे कायदे का खिलाड़ी नहीं माना जाता ।

सवाल- ओफ्फो, तो यह सब ही आप क्यों नहीं बता देते की आप क्या करते हैं ?
क्रिकेटर- देखिये, यह बता दिया तो प्रॉब्लम हो जायेगी न, अभी भी सात दिनों में सिर्फ़ छः दिन ही माल बेच पाते हैं । एक दिन क्रिकेट खेलना पड़ जाता है । यह बताने में शर्म आती है ।

बात समझ में आ गयी है की आख़िर क्रिकेटर क्यों नहीं बताना चाहते की वो क्या कर रहे थे ।



लेखक- आलोक पुराणिक
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फिर मिलेंगे

            इधर ऑटो रिक्शाओं के अध्ययन में जुटा, तो कई बातें मालूम पढ़ीं । एक ऑटो के पीछे लिखा था- फिर मिलेंगे । ऐसा अक्सर होता है, ऑटो वाले से पूछो कि अलां कालोनी चलोगे, तो वह बताता है कि नहीं, वह तो फलां कालोनी जा रहा है, और चला जाता है, संदेश देकर- फिर मिलेंगे । फिर मिलने के बाद भी यही डायलौग होता है कि हम तो फलां कालोनी… दिल्ली में ऐसा अक्सर होता है, जहाँ ऑटो को जाना है, वहां आपको नहीं जाना होता । पर यह आपकी समस्या है की आप वहां क्यों नहीं जाते, जहाँ ऑटो वाला जा रहा है ।

           बल्कि अब तो यह हो गया है कि खाकसार पहले यही पूछ लेता है ऑटो वाले से कि भाई साहब कहाँ जा रहे हैं ? अगर कहीं रास्ते में हमारी मंजिल आती हो, तो हमें भी डाल लीजिये अपने साथ ।

            खैर मामला यह नहीं था । मामला था ऑटो के पीछे लिखे ज्ञान संदेशों का । एक ऑटो के पीछे लिखा था- दोस्ती पक्की, पर खर्चा अपना-अपना । यह ऑटो वाला इधर के इंटरनेश्नल घटनाक्रम से वाकिफ नहीं लगता । अमेरिका और पाकिस्तान में दोस्ती पक्की, पर सारा खर्चा अमेरिका का- यह मॉडल उभर रहा है । पक्की दोस्तीयाँ टिकती ही इसी आधार पर हैं कि एक पूरा खर्चा उठाने को तैयार हो । खर्चा अपना- अपना ही करना है, तो दोस्ती की ज़रूरत ही क्या है । पाकिस्तान से बेहतर यह बात कौन समझ सकता है ।

            एक ऑटो के पीछे लिखा था- दुश्मनों से निपट लेंगे, दोस्तों से बचकर रहो । लगता है कि हाल में किसी पालिटिकल पार्टी के टिकट से चुनाव लड़कर हार गया है । दुश्मन ने तो एक बार ही हराया । बाकी पुराने गठबंधन वाली पार्टी के पुराने दोस्त रोज़ चिढाने लगते हैं, हालत एकदम लालूजी और पासवानजी वाली हो गई लगती है । पुराने दोस्तों से निपटना मुश्किल होता है । लालूजी और पासवानजी से ज्यादा बेहतर इस बात को और कौन समझ सकता है ?

             एक ऑटो के पीछे लिखा था- मालिक की गाड़ी, ड्राईवर का पसीना, दौडती है सड़क पर, बन कर हसीना । पता नहीं, इस शेर का हसीनाओं ने बुरा क्यों नहीं माना । हरी, पीली, काली, एक सी परमानेंट सज-धज में इधर से उधर दौड़ने वाले ऑटो को हसीना कहने पर भी वह बुरा नहीं मान रहीं हैं । इसका मतलब वह ऑटो वाले से झगडा मोल नहीं लेना चाहतीं । मैंने भी ऑटो वाले से झगडा करना छोड़ दिया है ।

चलूँ, एक ऑटो वाले से पुछू जहाँ वह जा रहा है, मुझे भी वहीं जाना है, क्या वह मुझे ले चलेगा ?



लेखक- आलोक पुराणिक
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डिस्काउंट ऑफर

            मियां हल्कान फेस्टिव सीसन के डिस्काउन्टमयी भव सागर में कोलंबस की तरह गोते लगते हुए जब किसी प्रोडक्ट पर 50% डिस्काउंट पाते हैं, जिसमें कंडीशन अप्लाई होती है तो जनाब ऐसा महसूस करते हैं मानो नई दुनिया की खोज करने का क्रेडिट उन्होंने ही पा लिया हो । जनाब डिस्काउंट औफ़रों से इतने गदगद हैं मानो उन्हें डिस्काउंट न मिला हो बल्की उन्होंने सामान फ्री में झटक लिया हो ।

अब जनाब इन ऑफरों से इतने प्रभावित हो चुके हैं की पूरे घर के मेकओवर का प्लान बना चुके हैं । यह तो गनीमत है की नई बीवी पर डिस्काउंट नही चल रहा है, नहीं तो जनाब उसका भी फायदा उठाने से नहीं चूकते ।

अब मियां हल्कान को कौन समझाए की इस फेस्टिव डिस्काउंट के चक्कर में न पड़ें क्योंकि हमारे देश में कुछ जगह डिस्काउंट ऑफ़र तो साल भर जारी रहते हैं । सबसे पहले बात करें ट्रैफिक पुलिस की । तो जनाब इनका तो डिस्काउंट ऑफ़र इतना अटरैक्टिव होता है की इस ऑफ़र से शायद ही कोई बच पाया हो ।

          अब ख़ुद देखिये बिना हेलमेट के गाडी चलाइये और पकड़े जाने पर तीन सौ की जगह बस पचास का एक पत्ता आगे बढ़ा दीजिये । फिर देखिये आपको कैसे नहीं मिलता है डिस्काउंट ऑफ़र । हाँ, इसमें कंडीशन अप्लाई होती है की इस डिस्काउंट को लेने के बाद अगर आपका एक्सीडेंट होता है तो सर की कोई गारेंटी नहीं होगी ।


लाखों रूपये की बिजली धड़ल्ले से जला डालिए । फिकर नॉट । बिजली विभाग का डिस्काउंट ऑफ़र आपके लिए हमेशा खुला रहता है । लाखों का बिल हजारों में और हज़ारों का बिल सैकड़ों में कन्वर्ट करने का डिस्काउंट ऑफ़र भला आपको कहीं और मिल सकता है ? हाँ, इसमें कंडीशन अप्लाई है की जब आपका कोई रिश्तेदार ज़िंदगी और मौत से जूझ रहा हो और बिजली नहीं आने के कारण ऑपरेशन टल जाए तो आपको बिजली विभाग पर चिल्लाने का अधिकार नहीं होगा ।


           एक यूनीक डिस्काउंट ऑफ़र हमारे यहाँ के कुछ कोचिंग संचालक गुरूजी भी देते हैं । इनकी कोचिंग में नाम लिखा लो साल भर स्कूल न आने का डिस्काउंट ऑफ़र लेलो । तुम इन्हें फीस दो यह तुम्हें नम्बर देंगे ।


          हाँ इनकी कंडीशन भी जान लीजिये । स्कूल के एक्जाम में तो आप श्योर एंड शाट पास हो जायेंगे लेकिन लाइफ और कैरियर के एक्जाम में पास होने की कोई गारेंटी नहीं है ।
हमारे देश की राजनीति का अधिकार ही डिस्काउंट ऑफ़र है । यहाँ तो जितना बड़ा हिस्ट्रीशीटर होता है पार्टियाँ उसे उतने ही बड़े पद का डिस्काउंट ऑफ़र देतीं हैं ।


          सरकार बनानी हो और संख्या बल कम हो तो निगमों, आयोगों, समितियों आदी के अध्यक्ष पदों का मलाईदार डिस्काउंट ऑफ़र आपके लिए हमेशा खुला रहता है । हाँ, इसमें कंडीशन यह होती है की ऐसी सरकारों की कोई स्टेबिलिटी नहीं होती ।

           डिस्काउंट के अटरैक्टिव इस दलदल में अगर कहीं डिस्काउंट की चमक नहीं है तो वह है एक आम आदमी की थाली, जिसको जमाखोरों और मुनाफाखोरों ने दाल-रोटी के लायक भी नहीं रखा ।


लेखक - अलंकार रस्तोगी [APPNAME]

Thursday, November 12, 2009

ब्रेकिंग न्यूज़ देखते हुए

ब्रेकिंग न्यूज़ देखते हुए बहुत कुछ ब्रेक हो जाता है मन के भीतर । यह ब्रेक कभी ऑफ़ ब्रेक होता है तो कभी लेग ब्रेक । क्रिकेट की भाषा में कहें तो कभी इनस्विंग होती है तो कभी आउट्स्व्ग । कभी दायें से चोट लगती है तो कभी बाएं से । हादसों की गुगली ही क्लीन बोल्ड मार देती है । ज़िन्दगी की गाड़ी ही जैसे स्पीड बराकर पर आ जाती है । सब कुछ रूक जाता है, थम जाता है जब ब्रेअकिंग न्यूज़ आती है । यह न्यूज़ एक्स्ट्रा प्राउड के साथ दिखाई जाती है । टीवी सेट पर लाल-नीले पट्टी चलती है । यह न्यूज़ प्रायः तबाही के मंज़र पेश करती है । कहीं प्यास से चटकी और दरकी हुए ज़मीन तो कहीं पानी-पानी हुए मुंबई दिखाई देती है । कहीं दुष्यंत कुमार कहते हैं- बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं और नदिया के किनारे घर बने हैं
कहीं पेट के बल पड़ी नावें नज़र आती हैं, सूखी नदी पर रेत के बादल उध्ते हैं, कहीं कोई अपनी कविता में कह उठता है-

पानी ने रास्ता बदल जो दिया,
वो नदी अब ज़मीन लगती है

बिजली -पानी का संकट होता है, ब्रेकिंग न्यूज़ आती है । भूख का तांडव होता है , ब्रेकिंग न्यूज़ आती है । बड़े शान से गुलशन का कारोबार चलता है । दहशत कलर टीवी में और भी ज़्यादा ईस्टमैन कलर में लुभाती है । आम आदमी आँखें फाड़कर देखता है । बीच-बीच में ड्राइंग रूम में चाय-नाश्ता भी चलता रहता है । एनाउंसर मुस्कुराता है या मुस्कुराती है हालाँकि ख़बर फूट-फोटकर रोने वाली होती है । ब्रेकिंग न्यूज़ ब्रेक के बाद जारी रहती है । इधर भूख से बिलबिलाते हुए बच्चे दिखते हैं तो उधर लज़ीज़ खाने की रेसेपी दिखाई जाती है । वनस्पती घी के तालाब में मछली सी तैरती पूठियाँ मुह में पानी लाती हैं ।

कहीं रेल का बजट आता है तो कहीं रेल पटरी से उतर जाती है । राहत सामग्री के पैकेट गैस के गुब्बारों से हवा में उड़ते हैं, आदमी के हाथ नहीं आते हैं । चैनल-चैनल का खेल चलता है । केज़ुअल्तीज़ मनोरंजन का साधन बनती हैं । हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ का तोहफा मिलता है, बस रिमोट का बटन पिटिर-पिटिर करना होता है । बस इतना करने भर से आदमी ठीक से देख पता नहीं और परदे पे मंज़र बदल जाता है । ब्रेकिंग न्यूज़ नर्वस डाउन भी करती है ।

आदमी घबरा जाता है, हालाँकि बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिनका बग़ैर ब्रेकिंग न्यूज़ देखे हुए खाना ही नही पचता । ब्रेकिंग न्यूज़ में बुरी ख़बरों का परसेंटेज ही डोमिनेट करता है । अच्छी ख़बरें मुश्किल से ब्रेकिंग न्यूज़ का गौरव बन पाते हैं । ब्रेकिंग न्यूज़ देखते हुए बहुत कुछ अनदेखा रह जाता है ।


लेखक - यश मालवीय
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हवा में नाश्ता हवा… हवा…

खूबचंद ने अपना बोर्डिंग पास लिया और काउंटर के पीछे से खूबसूरत मुस्कुराता हुआ ‘विश उ प्लीजेंट फ़्लैट ’ का मीठा स्वर प्राप्त किया । बैग हाथ में लेकर चल तो दिए लेकिन उस मुस्कान से बहार नहीं निकल पाये । इतनी प्लीजेंट स्माइल की आदमी बिना हवाई जहाज़ के उड़ने लगे । मुस्कुराहटों पर ज़िन्दगी गुज़ार देने वाली परम्परा के देश के वासी खूबचंद आज बहुत इम्प्रेस थे । पहली बार हवाई जहाज़ में बैठने का सुखद योग मिला था ।

किसी तरह पुलिस वालों की तलाशी से निकलकर आगे बढ़े ।
सिक्यूरिटी चेक के नाम से औकात जान लेने वाली सुरक्षा-व्यवस्था के बाद आगे बढ़कर एक कुर्सी पर बैठे खूबचंद लोगों की बताई बैटन से अपने को खुश करने में जुट गए । बताया गया था की सुंदर-सुंदर परी जैसी लड़कियां अपने हाथों से चाय-नाश्ता सर्व करती हैं । मनुहार करके खिलती हैं । बादलों के ऊपर हवा में उड़ते हुए परियों के हाथ अमृतपान कितना सुखद और रोमांचकारी होगा । इसी सपनीली वादी में विचरण करते-करते खूबचंद की आँख लग गई ।


खूबचंद को लगा की कोई अप्सरा बहुत ही मीठी आवाज़ में कह रही हो , ‘एस्क्यूस मी सर आप ही मी. खूबचंद हैं ।’ खूबचंद खुशी के मारे फूल गए और हडबडाकर जग गए । सामने वास्तव में छोटी स्कर्ट पहने , लाल वस्त्रों में अप्सरा थी, ‘सर आपकी फ़ाइनल कॉल हो चुकी है ऊपर चलिए ।’ इतनी सुंदर अप्सरा कहे तो ऊपर चलने में भी कोई हर्ज नहीं है । मंत्रमुग्ध हो पीछे-पीछे चल पड़े । अप्सरा ने जहाज़ में चढ़ा दिया । अच्छा लगा । खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गए । बाहर कुछ कर्मचारी वायुयान में ईंधन भर रहे थे । खूबचंद उनको हे दृष्टी से देखते हुए मन ही मन कह रहे थे - तुम लोग तेल भरो लेकिन अप्सराओं के साथ हम ही उड़ेंगे ।


थोड़ी देर बाद खूबचंद अप्सराओं के साथ वायुयान में बादलों से ऊपर थे । कई अप्सराएँ मुस्कान के साथ कभी आगे की ओर जातीं , कभी पीछे की ओर जातीं । एक अप्सरा ट्रे में पानी की छोटी-छोटी बोतलें लेकर आई । बगल में बैठे बेवक़ूफ़ आदमी ने मन कर दिया पर खूबचंद ने दो बोतलें ले लीं । आसमान में अप्सरा के हाथ का पानी आहा ।


पाँच मिनट बाद दूसरी अप्सरा प्लेटों में कटे हुए सुंदर-सुंदर फल लेकर आ गई । खूबचंद ने स्वर्ग फल अप्सरा के हाथों से ग्रहड़ किए । बगल वाला फिर बेवक़ूफ़ निकला । दस मिनट भी नहीं बीते होंगे की दो अप्सराएँ एक छोटी सी ट्राली को मुस्कुराते हुए ला रहीं हैं । उस पर सुदर-सुंदर पैकेट रखे हुए हैं । खूबचंद उसी को देख रहे थे और वो अप्सरा दूर से इन्हें देखकर मुस्कुरा रही थी । पास आई और बोली- ‘सर, यू वांट ब्रेकफास्ट ।’


खूबचंद तो सब चाह रहे थे जो भी वो अप्सरा लेकर आए । ‘हाँ , हाँ क्यों नहीं ।’ खूबचंद ने जमकर नाश्ता किया । बहुत खुश हुए । वाह, स्वर्ग सा आनंद । खूबचंद आखें बंद करना चाहते थे लेकिन हो ही नहीं रही थीं । कुछ पल बीते होंगे की एक अप्सरा मुस्कुराते हुए खूबचंद के पास आई और बोली- ‘सर, प्लीज़ पेय 750 रुपीज़ ओनली ।’


‘काहे के ?’ खूबचंद अपनी सैदपुरी औकात में आ गिरे । ‘सर जो आपने वाटर , जूस और रिफ्रेशमेंट लिए हैं उनके ।’
‘हमने तो सुना था की सब फ्री में मिलेगा ।’
‘सर वख्त बहुत बदल गया है । जल्दी कीजिये, मुझे अभी पूरे जहाज़ से वसूली करनी है ।’ और अप्सरा के साथ इनके बगल वाला भी मुस्कुरा रहा था ।



लेखक- सर्वेश अस्थाना

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चार्मिंग या हार्मिंग

इंडियन टीम के विकेट पके आम की तरह धडाधड टपकते जा रहे थे और मेरे जैसे क्रिकेट लवर्स की आस रेगिस्तान में घाँस की तरह गो, वेंट, गौण होती चली जा रही थी । सारे विश्लेषण और संश्लेषण, यहाँ तक की खेल का पोस्मार्टम करने के बाद भी टीम की ऐसी दशा की दिशा दूंडे नही मिल रही थी । खैर, तभी ड्रिंक ब्रेक हुआ , मैंने भी अपना गरम दिमाग ठंडा करने के लिए एक घूँट पानी गटका । लेकिन जैसे ही दूसरा घूँट मुह में डाला वह हलक में ही अटक गया ।

क्यूंकि मेरी नेत्रेंद्रियों ने देखा की मल्लिका शेरावत और राखी सावंत टाइप विदेशी बालाएं पानी और कोल्ड ड्रिंक की बोतलें लिए खिलाड़ियों की प्यास बुझाने का प्रयास कर रहीं थीं । एकाएक अहसास हुआ मानो क्रिकेट ग्राउंड इन्द्र सभा में तब्दील हो गया हो और सुंदर अप्सराएँ सोमरस की जगह कोकेरस पिला रहीं हों । यह सब देखकर मुझे खेल की दशा और दुर्दशा दोनों की दिशा ही नहीं बल्कि दिशाएं तक पता चल गयीं ।


अमां ख़ुद बताइए धोनी, युवराज, भज्जी, इशांत जैसे कुवारों की टीम में प्यास बुझाने के लिए अगर ड्रिंक गर्ल्स आयेंगी तो वह उनकी प्यास बुझायेंगी या बढाएंगी इसका अंदाजा तो आप ही लगा सकते हैं । ज़रा सोचिये जब विश्वामित्र जैसे तपस्वी ने मेनका के आगे सरेंडर कर दिया तो हमारे इन दिल्फेक क्रिकेटरों की क्या बिसात है ? बेचारे जब बोलर्स की स्विंग से ज्यादा ड्रिंक गर्ल्स पर कंसंट्रेट करेंगे तो बोल्ड तो होंगे ही।


जैसे ड्रीम गर्ल किसी शायर की ग़ज़ल में हुआ करती थीं, वैसे ही यह ड्रिंक गर्ल्स किसी ललित मोदी की पहल लगती हैं । चीयर गर्ल्स ने तो 20-20 को hit और hot दोनों ही करा दिया लेकिन इन ड्रिंक गर्ल्स ने तो 50-50 की वाट लगाने का पूरा इन्तेजाम कर दिया है । अब जब से पानी पिलाने ड्रिंक गर्ल्स आने लगीं हैं, तब से तो हर अच्छा खासा खिलाड़ी भी पानी मांग जाता है । अब तो मैं भी यही दुआ करता हूँ की धोनी भले ही चौके -छक्के न मारें अलबत्ता हर चौथे -पांचवे ओवर में ड्रिंक ज़रूर मंगाते रहें । आख़िर प्यास का मामला है।


इधर कुछ समय से ऐसा लग रहा है की क्रिकेट का गर्ल्रीकरण होता चला जा रहा है । पहले मंदिरा बेदी ने कमेंट्री कर सब पर कमांड कर लिया, फिर चीयर गर्ल्स ने सबको चकाचौंध कर दिया और अब ड्रिंक गर्ल्स ने अपने ड्रिंक से हमारे क्रिकेटरों को मदहोश करके रखा हुआ है । खुदा खैर करे मुझे तो उस अंजाम से ही डर लगता है जब मैदान पर अम्पायरिंग भी गिर्ल्स किया करेंगी ।


ऐसा ही रहा तो आने वाले दिनों में इन गर्ल्स के सुर-ताल के चलते क्रिकेट प्लेयर के लिए कम, ग्लैमर के लिए ज्यादा जन जाएगा । क्रिकेट अब केवल जेंटलमैन का गेम न रहकर लेडीज़ और जेंटलमैन का गेम बनकर रह गया है । जिस गेम को कभी बैट्समैन, बोलर व फील्डर के लिए देखा जाता था, ड्रिंक गर्ल्स और कमेंटेटर के लिए देखा जा रहा है। भाई क्या ज़माना आ गया है।


लेखक - अलंकार रस्तोगी
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Tuesday, November 03, 2009

सरकारी कवि सम्मलेन

आजकल कवि सम्मलेन का प्रचार -प्रसार है ।
कवि सम्मलेन उद्योग है , व्यापार है ।
और कोई खेती न लहलहाए , लेकिन कवियों की खेती में बहार है ।
हालाँकि उसमें भी काफी खरपतवार है ।
यह अलग बात है की अभी तक यह इंडस्ट्री उद्योगपतियों और फिल्मी कलाकारों की नज़रों में नहीं आई
है
तभी आईपील की तरह कवियों की कोई आईपील (इंडियन पोयटिक लीग ) नही बन पाई है ।
वरना हर कवि सम्मलेन में कुछ गिने-चुने, नमी- गिरामी कवि ही नज़र आते ।
छुटभय्ये कवि तो मौका ही नही पाते ।

फिर भी इस इंडस्ट्री की हालत बहुत अच्छी नहीं है ।
आजकल यह ठेकेदारों के नज़रों में आ गई है ।
इनमे से अधिकांश नॉन - पोअत्ट्स हैं, जो कवि श्रेरीं में तो नहीं आते हैं , फिर भी सारे देश में संयोजक के रूप में जाने जाते हैं ।
ऐसे कुछ ठेकेदार जो ठोढी बहुत तुकबंदी भी जानते हैं, अपने आप को सबसे बड़ा कवि मानते हैं ।
अगर इनमें से कुछ पत्रकार भी हुए तो बड़े -बड़े सरकारी अधिकारी भी इन्हे अच्छी तरह पहचानते हैं ।
और यह सरकारी कवि सम्मेलनों का संयोजन अपना पहला हक़ मानते हैं ।
आयोजक भी बेचारा अच्छी कवरेज के लालच में इनसे ही संयोजन करवाता है ।
इसीलिये इन कार्यक्रमों में छुटभय्ये कवियों को मौका नहीं प्राप्त होता है ।

फिर भी एक युवा कवि महोदय डीऍम के पिए से रिश्तेदारी की वजह से एक सरकारी कवि सम्मलेन का संयोजन पा गए ।
यह खुशखबरी लेकर मेरे पास आ गए ।
कई कवियों के बारे में मुझसे डिस्कस किया । उनका नम्बर लिया ।
मैंने भी उन्हें हर तरह से सहयोग का आश्वासन दिया ।
अगले सप्ताह वे मुझसे फिर टकराए । बहुत उदास नज़र आए ।
मैंने पूछा , भाई इस उदासी की वजह क्या है ?
क्या आपका कवि सम्मलेन किसी और ने झटक लिया है ?
वे बोले नही , कार्यक्रम तो अभी मैं ही करवा रहा हूँ ।
पर यह समझिये की बस सरकारी ज़िम्मेदारी निभा रहा हूँ ।
मैंने कहा , जब आप ही करवा रहे हैं तो इतना उदास क्यो नज़र आ रहे हैं ।
बताइए किसको -किसको बुलवा रहे हैं ।

वे बोले - पाँच पत्रकार हैं । पाँच डीऍम साहब के रिश्तेदार हैं ।
पाँच एसडी ऍम साहब के रिश्तेदार हैं । पाँच नाम मंत्री जी ने भिजवाए हैं ।
पाँच विधायक जी की चिट्ठी लेकर आए हैं । पाँच नाम सी. ई. ओ. साहब ने दिए हैं ।
पाँच के लिए मुहल्ले के दरोगा जी का दबाव है । अभी पाँच नाम और आने हैं ।
क्योंकि कुल चालीस कवि ही बुलवाए जाने हैं ।
अब अगर कोई और सिफारिश नही आई तो आप को भी बुलवाऊंगा ।
पर अगर कहीं कुछ सिफारिशी नाम और आ गए तो शायद मैं भी कविता नहीं पढ़ पाऊँगा ।
इतना कहते -कहते उनका गला भर आया । अब तो आप समझ गए होंगे सरकारी कवि सम्मलेन की माया ।

लेख़क - डॉ . कमलेश दिवेदी
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आमिर बोले - खूब कही !

खूबचंद ने अपनी मेमोरी पर एक नज़र दौडाई तो पाया की कुछ भूल रहे हैं। काफी ज़ोर डालने पर याद आया की ‘गजनी’ वाले संजय सिंघानियाँ का इंटरव्यू का लेना है। शार्ट टर्म मेमोरी लॉस। लेकिन खूबचंद फिर भूल गए की आखिर किस मुद्दे पर बातचीत करनी है। फिर दीवार पर गजनी वाले खूबचंद ने अपने मोबाइल को रिकॉर्ड पर डाला और आमिर खान से बातचीत करने लगे- सर, मैं आपका इंटरव्यू लेना चाहता हूँ
कौन हो तुम ! जल्दी लो जो भी लेना है वरना मैं भूल भी सकता हूँ की तुम क्या लेने आए हो ? वास्तव में मुझे एक रोग हो गया है, जिसमे कुछ याद्दाश्त से सम्बंधित मामला है लेकिन क्या है मझे याद नहीं। जी मैं उसी से सम्बंधित आपका इंटरव्यू करना चाहता हूँ । खूबचंद ने बालों में बनी पगडण्डी पर अपनी निगाहें दौड़ाईं
आज तो मैं अपनी डायरी घर पर ही भूल आया हूँ उसी में सब लिखा है- आमिर खान ने अपने दाहिने-बाएं कुछ टटोल कर कहा । अच्छा तो मैं चलता हूँ कल आप लेते आएगा।

मैं या तो खूद आ जाऊँगा या फिर किसी को भेज दूँगा उसे दे दीजियेगा।
आमिर खान ने अपनी तर्जनी उंगली सर पर बनी उस सूखी नहर छाप नाली में फिराई । अचानक कुछ याद आया- हाँ, हाँ खूबचंद जी बैठिये । हाँ पूछिए क्या पूछना है ? अभी मुझे पन्द्रह मिनट सब याद रहेगा। फिर धीरे-धीरे सब भूल
जाऊँगा।
आपने ‘गजनी’ बनाई लेकिन हीरो आप ख़ुद है । जनता को बेवकूफ बनाया । जनता तो ‘गजनी’ के सुलतान को देखना चाहती थी। आपने लफंगा दिखाया ।
मैं कुछ अलग हटकर हूँ - आमिर बोले।
आपका हीरो थोडी ही देर बाद सब भूल जाता था, ऐसा क्यों ?
ये थ्योरी हमने फ़िल्म पिटने की दशा के लिए बनाई थी ।
आपका हीरो अपने हाथ-पैर पर लिखना नही भूलता था । कपड़े पहनना नही भूलता था ।

वो हीरो था उसे थोड़ा बहुत याद रखना ज़रूरी था।
लेकिन आपका हीरो अपनी बालों की स्टाइल कभी नहीं भूला ? आमिर मियां रहमान को आस्कर मिल जाने के ट्रौमा से अभी बहार नही निकल पाये थे । गरजकर बोले- आप इंटरव्यू-विन्टर्र्व्यू बंद कीजिये । मैं ‘लगान’ के समय से परेशान हूँ की मुझे आस्कर क्यों नही मिला ? खूबचंद बिना मुद्दे के थे सो कांफिडेंस के साथ बोले- बुरा मत मानियेगा आमिर साहब । आस्कर देते हैं अँगरेज़ लोग । आपने ‘लगान' में अंग्रेजों की तिड़ी बुला दी थी। उनको देना ही नही था। हारा हुआ अँगरेज़ भला हारने वाले को ऑस्कर देगा ?
तो स्लम्डाग को क्यों दिया ? आमिर ने आँसू भरकर पुछा । अपने आपको अंग्रेजों के सामने जितना बड़ा  डाग 
बनाओगे, उतना ही पाओगे । अगली बार आप बनायिगा- ग्रैंड सन ऑफ़ स्लम्डाग । आमिर बोले - ये अपने खूब कही ।

लेखक- सर्वेश अस्थाना
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Monday, November 02, 2009

२००९ का विज्ञापन

२००८ खड़ी कर गया खाट । हम सबने क्या-क्या कष्ट नहीं झेले । इतने पापड़ ज़िन्दगी में कभी नही बेले। सारा देश आर्थिक मंदी से जूझता रहा, पुब्लिक का खून मच्छरों से ज़्यादा कोई और चूसता रहा। बाहरी लोगो नें फुडाये बम और धमाके, अपने तो निकल लिए चूना लगा के ।

कहीं विश्वासमत का खेल तो कहीं उसूलों की रिडक्शन सेल। कायम रही माननीयों की गुंडई, कितनी ही साइकिलों पे चढ़ गई हुंडई। उधर चलती रही राजठाकरे की बकैती, इधर पड़ती रही उत्तर भारतियों पर डकैतीसीरियलों में जारी रही सास-बहु की मक्कारी, तो न्यूज़ चैनलों पर आ गई एक्सक्लूसिव की बीमारी। बोर करते रहे सी ग्रेड कॉमेडी-सर्कस, तो रियल्टी शो से ऊब गए देश के दर्शक । पुलिस का अफ़ैइआर से बना रहा परहेज़, बिकते रहे दूल्हा चलता रहा दहेज़ ।

बिग बी से गिरकर राजपाल की हाईट पर आ गया सेंसेक्स । सदन में लहराती रही नोटों की गाडियां, तो लोकतंत्र के आँगन में चलती रही कबधिया । इधर कोसी नदी का प्रकोप और आपदाएं, उधर बुश को बिना मांगे चरण पादुकाएं ।

इस तरह साल भर तनी रही सन आठ की कार्बाइन, इसलिए हम लायें हैं नया 2009 । यह भला और चंगा है, सिर्फ़ दिखने में महंगा है । तो लीजिये पेश है 9 की खुशी के नो पिटारे । एक -एक कर दिखाता हूँ -
पहले पिटारे में है बॉलीवुड करियर पाउच, बिल्कुल फ्री ऑफ़ कास्टिंग काउच ।

दूसरे पिटारे में है कुवारों की आशाएं यानि आपके लिए ज़िन्दगी की बिपाशायें ।

तीसरे पिटारे में भरी है एनर्जी, इसका सेवन करते ही दूर हो जायेगी खुदगर्जी ।

चौथे में है प्रेम और भाईचारा, इसी में देखिये मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारा ।

पाँचवे में है एम्प्लौईमेन्त के चांस ही चांस ।

छटवें में है सब के लिए बराबर रोमांस ।

सातवें पिटारे में है ईमानदारी की हाई डोज़, चरित्र लड़खादाते ही एक गोली रोज़ ।

आठवें में है अमन चैन की मनगल्कामनयें, लेकिन ये तभी एक्टिव होंगी जब आपकी होंगी इसी ब्रांड की भावनाएं ।

नवें और आखरी पिटारे में है उम्मीदों का भरपूर उजाला, अब मत कहिये गा की पप्पू कांट डांस साला ।

तो आप भी लीजिये नए साल की नई अंगडाइयां, फिलहाल इस विज्ञापन पर न शर्तें लागू न कंडीशन अप्लाई ।




लेखक - मुकुल महान ।

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ली का फंडा

(ब्रूस ली और उनकी पसंद )


पसंदीदा सब्जी ?
मू ली

पसंदीदा खाना ?
था ली

पसंदीदा नाश्ता ?
इड ली


पसंदीदा अभिनेत्री ?
सोना ली


पसंदीदा त्यौहार ?
दीवा ली


पसंदीदा पर्वतीय स्थल ?
कुल्लू -मना ली


पसंदीदा क्रिकेटर ?
सौरव गांगु ली


पसंदीदा उपनाम ?
मावा ली


पसंदीदा नौकरी ?
कू ली


क्या होता है जब ब्रूस ली की फ़िल्म ख़त्म हो जाती है ?
खा ली

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ऍम .पी .

रामपुर गाँव में एक लड़का रहता था, जो पढने में बहुत तेज़ था। जब नौकरी के लिए उसे इंटरव्यू में बुलाया गया तो उसने दो शब्द रट लिए। वह शब्द था 'ऍम. पी.' जब वह इंटरव्यू देने गया तो साहब ने उससे पूछा:-


साहब - तुम्हारा नाम क्या है ?
लड़का - एम.पी.
साहब - ठीक से बताओ।
लड़का -जी ! महेश पाल।
साहब - कहाँ रहते हो ?
लड़का - एम.पी.
साहब - मध्य प्रदेश ?
लड़का - आपने ठीक समझा ।
साहब - तुम्हारे प्रदेश के मुख्य मंत्री कौन हैं ?
लड़का - मंगल पाण्डेय ।
साहब - तुम्हारे घर में कौन -कौन रहता है ?
लड़का - एम .पी.
साहब - मैं समझा नहीं ।
लड़का - माता-पिता ।

साहब - कितने तक पढ़े हो ?
लड़का - एम.पी.
साहब - साफ़ बताओ ?
लड़का - मैट्रिक पास ।
साहब - तुम्हे क्या पसंद है ?
लड़का - एम.पी.
साहब - क्या मतलब ?
लड़का - मटर-पनीर ।

(अब साहब को एम.पी. सुनकर बड़ा मज़ा आ रहा था, वह उससे और सवाल पूछने लगे ।)

साहब - तुम यहाँ कैसे आए ?
लड़का - एम.पी.
साहब - मच्छर पकड़ते हुए ?
लड़का - नहीं मोटर पर ।
साहब - तुम अब तक क्या करते थे ?
लड़का - मछली पकड़ता था।
साहब - तुम्हे यहाँ कैसा लगा ?
लड़का - एम.पी.
साहब - मतलब ।
लड़का - माथा पच्ची ।
(साहब ने उस लड़के को नौकरी दे दी क्योंकि वह दिमाग का बहुत तेज़ था और ‘एम.पी.’ शब्द से ही उसने अपना इंटरव्यू दिया ।)
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