Sunday, December 20, 2009

कविता का भूत

             ( कृपया जो लिखा है उसे ऐज़ इट इज़ पढ़ें । अपना ज्ञान बघारकर सुधरने का दुष्प्रयास न करें अन्यथा व्याकरण आपको कभी माफ़ नहीं करेगा । ) 
            खूबचंद के मोबाईल में वाइब्रेशन कम रिंगटोन बज उठी । नंबर अंजना सा था, उठाया । उधर से एक नारी स्वर बोला, शर नमश्ते ! खूबचंद ने जवाब दिया- जी नमस्कार, कहिये । उधर से जो स्वर था उसमें आलरेडी हल्का सा तीखापन था ही- शर आप खूबचंद जी बोल रहे हैं । जी हाँ, कहिये- खूबचंद मन ही मन महिला प्रशंसक मिलने की खुशी के कारण कॉर्न से पापकार्न हो चले ।
          शर, हम आपको सुने थे, देखे भी थे । आप बहुत बढियाँ कबीता गाये थे । हम आपके बहुत बड़े फैन हैं । उधर का स्वर कुछ एक्स्ट्रा तवज्जो दे रहा था ।
जी शुक्रिया ! खूबचंद ने अपनी ख़ुशी के पापकार्न को कौर्नफ्लेक्स बनने से रोकते हुए कहा । वैसे भी ऐसे वक्त पर हर व्यक्ति आम आदमी की तरह रीएक्ट करता है । शर, हम आपसे मिलना चाहती हूँ । खूबचंद ने शालीनतापूर्वक अपना पता समझा दिया और कहा आने से पहले फोन ज़रूर कर लीजियेगा ।
           दूसरे दिन सवेरे दस बजे फोन के बजाये घर की घंटी चिचिया उठीं । आवाज़ फोन की जगह साकार खड़ी थी । शर, हमको इन्फार्मेशन मिली है की आप नए लोगों को आगे बढ़ाने का काम करते हैं । हम आगे बढ़ना चाहते हैं । हम भी कबी हैं । अच्छा-अच्छा आप भी कवितायेँ लिखतीं हैं, बड़ी खुशी की बात है । क्या लिखती हैं गीत, ग़ज़ल या छंद । खूबचंद सीनियर बनते हुए बोले ।
            हमारा भाई भी कबी है । हम लोग जौएंट लिखते हैं । हम लोग अपनी एक किताब छाप लिए हैं पर आज तक विमोचन नहीं हो पाया । खूबचंद हिन्दी काव्य साहित्य के स्वर्णिम भविष्य से आश्वस्त हो चले थे । ऊपर से संयत होकर बोले- एक कविता सुनाइए । देखें आपने क्या लिखा है । वो फटाक से बोलीं- हम कबीता सुनाते हैं जिसका सीर्सक है साम-

बेवफा पती के सर पर टिल्ला बना दूंगी,
सराफत से रहेगा तो चिल्ला खिला दूंगी ।
मुर्गा बोलता है पर बलम सोता है ,
कुत्ता काटता है तो भौंक-भौंक रोता है ।

           खूबचंद ने मरियल कुत्ते की तरह दर्द भरी आवाज़ में कहा, आप कवितायेँ क्यों करना चाहती हैं ? वह बोलीं- हम लता जी और आसा जी की तरह कबीता में नाम कमाना चाहतीं हूँ । डरते-सहमते खूबचंद ने पूछ लिया की इसका शीर्षक तो शाम है पर आपकी कविता में शाम का कहीं ज़िक्र तक नहीं आया । इस बात पर उसने कहकहा लगाया - वाह शर वाह । आप कैसे कबीता लिख लेते हैं, जब आपको यही नहीं पता । खूबचंद पागल कुत्ते की तरह भौकना चाहते थे पर भीगी बिल्ली बनकर बोले- क्या नहीं पता । वह खूबचंद को समझाते हुए बोली- सीर्सक तब का लिखा जाता है जब कबीता लिखी जाती है । ये कबीता हमने साम को लिखा था इसलिए इसका सीर्सक साम है ।
           खूबचंद को लग रहा था वो पापकार्न से मखाना हो गए हैं और किसी स्पाइसी ग्रेवी वाली सब्जी में डाल दिए गए हैं । हिन्दी साहित्याकाश में एक और ऊषा की लीला छाने वाली है । खूबचंद उसकी किताब का विमोचन समारोह कराने की तैयारी में जुटे हैं ।


लेख़क- सर्वेश अस्थाना 
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Tuesday, December 15, 2009

कम्बख्त इश्क

मियां हलकान ने पाँच सौ साल पुरानी ऐतेहासिक ईमारत की दीवारों पर बड़ा सा दिल बनाया और अपनी प्रेमिका का नाम ईटाक्षरों से लिख अगले पाँच सौ सालों के लिए महफूज़ कर दिया । फिर ऐसे छाती चौड़ी की मानो मजनू के इकलौते वारिस वही हों ।
            हालाँकि यह पुनीत व साहसिक कार्य इससे पहले भी कई और मजनुओं की औलादें कर चुकी थीं । जनाब ने तो महज़ उनकी परम्परा का निर्वहन किया था ।
जनाब अब सोच रहे थे की बेवक़ूफ़ था वह शाहजहाँ जिसने ताजमहल में फ़िज़ूल का टाइम और पैसा वेस्ट किया । हमारी ही तरह अपने दादा, परदादा यानी अकबर और हुमायूँ की बनवाई किसी ईमारत पर ऐसे ही शाहजहाँ लव्ज़ मुमताज़ उकेर देते । एक सेकेंड में बरसों का काम हो जाता ।
            मियां हलकान जहाँ भी जाते हैं अपनी इस बहादुरी का प्रदर्शन ज़रूर करते हैं । शायद ही इंडिया की ऐसी कोई खुशनसीब ईमारत होगी जिस पर जनाब की नज़र-ऐ-इनायत न हुई हों । जनाब की प्रेमिका का हर दो साल में रेनोवेशन हो जाता है मगर उनकी मुहब्बत में जो घाव बेचारी इमारतों को लगे हैं वह वक्त के साथसाथ बढ़ते ही चले ही जा रहे हैं ।
अब जब से प्रेमी व प्रेमिका रखना एक फैशन की कैटेगरी में आ गया है तब से तो बेचारी इन दीवारों की शामत ही आ गयी है । पहले लोग छुपते-छुपाते दीवारों पर अपनी निशानियाँ बनाते थे । लेकिन आज हालात ऐसे हैं मानो सारी मुहब्बतें लोग दीवारें ख़राब करके ही जता पाते हों । बाकायदा काम्पेटीशन की तरह लोग दीवारों पर अपनी मुहब्बतों का पोस्ट्मार्टम करते फिर रहे हैं । अब तो बाकायदा इसका एक दिन फिक्स हो गया है जिसे वैलेंतैन डे कहते हैं ।
एक बार मियां हलकान से यह सवाल किसी ने पूछ ही लिया की अपनी मुहब्बत की सारी भड़ास तुम ऐतेहासिक इमारतों पर ही क्यों निकलते हो । अरे भाई, तुम्हारे घर पर भी तो दीवारें हैं कुछ उनको भी दिलों और तीरों से सजाओ । अपने मियां हलकान कम हाज़िर जवाब हैं, बोले… हमारा घर कौन सा मुमताज़ का मखबरा है, जिसे देखने दुनिया आती है । हमें तो अपनी मुहब्बत को वर्ल्ड फेमस करना है । बताइए ऐसे लोगों को कौन समझाए की घरवालों के सामने अपनी मुहब्बत का इज़हार नहीं कर पाते और चले हैं अपनी मुहब्बत को वर्ल्ड फेमस करने ।
काश! मुहब्बत करने वाले समझ पाते की मुहब्बत का मज़ा बनाने में होता है मिटाने में नहीं । मुहब्बत के लिए तो लोग सब कुछ कुर्बान कर देते हैं । क्या हम अपनी मुहब्बत महज़ अमूल्य ऐतेहासिक धरोहरों को ख़राब करके ही जता सकते हैं । सच्ची मुहब्बत है तो एक पौधा अपनी मुहब्बत के नाम का लगा के देखो तुम्हारा प्यार भी अमर हो जाएगा ।







लेखक- संजीव जयसवाल ‘संजय’

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Friday, December 04, 2009

घंटा भंगुर बिजली

बिजली दर्शन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलू इस प्रकार हैं-


जीवन क्षणभंगुरम च बिजली घंटा भंगुरम, ज्ञानी पुरुषस्य यह लक्ष्णम, न बिजली आने की खुशी, न जाने का ग़म ।

भावार्थ- जीवन क्षण भंगुर है और बिजली घंटाभंगुर है । अभी आयी है, अभी चली जायेगी ।कहाँ से आती है, कहाँ जाती है, बिजलीघर वालों को भी नहीं मालूम । उन्हें कुछ नहीं मालूम ।विद्वानों ने कहा है ज्ञानी पुरूष सुख और दुःख दोनों में समान स्तिथि में रहता है । ऐसी सूरत मेंज्ञानी पुरूष का यही लक्षण होता है की वह बिजली आने की खुशी न मनाये और बिजली जानेका ग़म न करे । दुनिया फानी है, बिजली आनी है, जानी है । संसार दुःख है, ऐसा जिनज्ञानियों नें कहा है, उन्होंने बिजली के कष्ट को बहुत भोगकर ही कहा है ।

बिजली अनुपस्थितम किम गम, पूर्व जन्मात संस्कारत कर्म फल का रिज़ल्टम, यही विचारात ।

भावार्थ - बिजली अगर अनुपस्थित है, तो किस बात का ग़म । यह तो पूर्व जन्म के संस्कार हैं। तूने पिछले जन्म में बड़े पाप किए होंगे, तभी तुझे किसी उत्तर भारतीय शहर मेंजीवन-यापन करना पड़ रहा है । ऊपर नरक में पानी और बिजली की सप्लाई की परेशानी कोदेखते हुए ऊपर वाले को नरक में 'नो वैकेन्सी' का बोर्ड टांगना पड़ता है । ऐसे सबको उत्तरभारत के बिजली-पानी विहीन शहरों में जन्म लेकर अपने पूर्व जन्म के कर्मों को काटना पड़ताहै । तेरे सारे पुराने पाप कट जायेंगे, तो फिर तू अमेरिका या ब्रीटेन के किसी बिजली युक्त शहरमें जन्म लेगा । ज्ञानियों नें कहा है की कर्म तो काटने पड़ते हैं । यही समझकर तू अंधेरे में, पसीने-पसीने होते हुए पूर्व जन्म के दुष्कर्मों के लिए क्षमा मांग ।

बिजली गायबम, गहन चिंतनम, मारम धाडम विकट विजयं यही स्टोरी ऑफ़ सिकंदरम बाबरम् अकबरम

भावार्थ- ज्ञानी कहते हैं की बिजली की अनुपस्तिथि में कई तरह के धाँसू विचार उपस्थित होजाते हैं । बिजली गायब है, अँधेरा है, हवा है, हवा नहीं चल रही है, पंखा नहीं चल रहा है । ऐसेमें दिमाग में विकट गरमी भर जाती है और बंदा युध्दोत्सुक हो उठता है, विकट युद्धअभियानों की तरफ़ निकल चलता है और विजयश्री का वर्णन करता है । जैसे बाबरअफगानिस्तान जैसे ठंडे मुल्क से इंडिया आया था, यहाँ की गरमी में युध्दोत्सुक हो उठा औरविकट मारधाड़ मचाकर मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की । ऐसे ही राजस्थान में जन्मे अकबरपर गरमी ने असर दिखाया और परिणाम इतिहास में दर्ज है । अगर उस दौर में बिजली, पंखे, ऐसी होते, तो ये सब आराम पड़े ठडंक में सोये पाये जाते । इतिहास में इनका नाम दर्ज न होपाता ।

सो हे जातक, बिजली की अनुपस्तिथि की चिंता न करते हुए उसके गायब होने केसकारात्मक पक्षों पर विचार करें ।


लेखक- आलोक पुराणिक
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Tuesday, December 01, 2009

क्योंकि मैं एक्सपर्ट हूँ

सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर-नीचे क्यों जाता है ? 
जवाब- यह कोई नहीं जानता है पर सब बताते हैं । बताने के पैसे मिलते हैं ।
सवाल- ऐसा क्यों होता है ? 
जवाब- क्योंकि ऐसा करना एक्स्पर्टतत्व कहलाता है ।

सवाल- ऐसा करना एक्स्पर्टतत्व क्यों कहलाता है ? जवाब- क्योंकि एक्सपर्ट वो होता है, जो सूट-पैंट पहनकर शेयर बाज़ार के ऊपर-नीचे जाने की व्याख्या करता है ।
सवाल- जो सूट-पैंट नहीं पहनता, क्या वह एक्सपर्ट नहीं होता ? जवाब- जो सूट-पैंट नहीं पहनता, वह एक्सपर्ट नहीं निवेशक होता है, जिसकी रकम, सूट-पैंट समेत शेयर बाज़ारमें घुस चुकी होती है । निवेशक के पास सूट-पैंट नहीं सवाल होते हैं । बवाल होतें हैं । चिंताएं होतीं हैं ।
सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि वह उस टाइम नीचे नही जा रहा होता है । मतलब वह गढ्ढे में नहीं जा रहा होता है ।


सवाल- शेयर बाज़ार नीचे क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि वह ऊपर नहीं जा रहा होता है ।
सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि उस टाइम डॉलर गिर रहा होता है ।
सवाल - शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि उस टाइम डॉलर चढ़ रहा होता है ।
सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों जाता है ? जवाब- क्योंकि उस टाइम डॉलर न चढ़ रहा होता है, न गिर रहा होता है ।


सवाल- एक ही सवाल के जवाब अलग -अलग क्यों हो सकते हैं ? जवाब- एक्सपर्ट एक ही सवाल के जवाब एक ही बार में अलग-अलग दे सकता है । एक्सपर्ट-एक्सपर्ट होता है ।
सवाल- शेयर बाज़ार गिरा क्यों ? जवाब- क्योंकि इंडोनेशिया में भूकंप आ गया ।
सवाल- शेयर बाज़ार उठा क्यों ? जवाब- क्योंकि इंडोनेशिया में भूकंप आ गया ।
सवाल- शेयर बाज़ार न गिरा, न उठा, क्यों ? जवाब- क्योंकि इंडोनेशिया में भूकंप आ गया ।
सवाल- आप हर सवाल का जवाब इंडोनेशिया के भूकंप में ही क्यों दे रहे हैं ? जवाब- एक्सपर्ट आप हैं या मैं ।


सवाल- शेयर बाज़ार ऊपर क्यों गया ? जवाब- उस सीरियल की हिरोइन ने चौथी शादी करने का मन बना लिया था इसलिए ।
सवाल- अगले दिन शेयर बाज़ार फिर क्यों गिरा ? जवाब- क्योंकि उस सीरियल की हिरोइन ने चौथी शादी का मन बना लिया था इसलिए ।
सवाल- उस दिन तो शेयर बाज़ार न गिरा न चढा ? जवाब- क्योंकि उस सीरियल की हिरोइन ने चौथी शादी करने का मन बना लिया था इसलिए । सवाल- आप हर सवाल का जवाब चौथी शादी में ही क्यों दे रहे हैं ? जवाब- एक्सपर्ट आप हैं या मैं ।
बात में दम है । आप ही बताइए एक्सपर्ट आप हैं या मैं ।

लेखक- आलोक पुराणिक

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