Tuesday, December 15, 2009

कम्बख्त इश्क

मियां हलकान ने पाँच सौ साल पुरानी ऐतेहासिक ईमारत की दीवारों पर बड़ा सा दिल बनाया और अपनी प्रेमिका का नाम ईटाक्षरों से लिख अगले पाँच सौ सालों के लिए महफूज़ कर दिया । फिर ऐसे छाती चौड़ी की मानो मजनू के इकलौते वारिस वही हों ।
            हालाँकि यह पुनीत व साहसिक कार्य इससे पहले भी कई और मजनुओं की औलादें कर चुकी थीं । जनाब ने तो महज़ उनकी परम्परा का निर्वहन किया था ।
जनाब अब सोच रहे थे की बेवक़ूफ़ था वह शाहजहाँ जिसने ताजमहल में फ़िज़ूल का टाइम और पैसा वेस्ट किया । हमारी ही तरह अपने दादा, परदादा यानी अकबर और हुमायूँ की बनवाई किसी ईमारत पर ऐसे ही शाहजहाँ लव्ज़ मुमताज़ उकेर देते । एक सेकेंड में बरसों का काम हो जाता ।
            मियां हलकान जहाँ भी जाते हैं अपनी इस बहादुरी का प्रदर्शन ज़रूर करते हैं । शायद ही इंडिया की ऐसी कोई खुशनसीब ईमारत होगी जिस पर जनाब की नज़र-ऐ-इनायत न हुई हों । जनाब की प्रेमिका का हर दो साल में रेनोवेशन हो जाता है मगर उनकी मुहब्बत में जो घाव बेचारी इमारतों को लगे हैं वह वक्त के साथसाथ बढ़ते ही चले ही जा रहे हैं ।
अब जब से प्रेमी व प्रेमिका रखना एक फैशन की कैटेगरी में आ गया है तब से तो बेचारी इन दीवारों की शामत ही आ गयी है । पहले लोग छुपते-छुपाते दीवारों पर अपनी निशानियाँ बनाते थे । लेकिन आज हालात ऐसे हैं मानो सारी मुहब्बतें लोग दीवारें ख़राब करके ही जता पाते हों । बाकायदा काम्पेटीशन की तरह लोग दीवारों पर अपनी मुहब्बतों का पोस्ट्मार्टम करते फिर रहे हैं । अब तो बाकायदा इसका एक दिन फिक्स हो गया है जिसे वैलेंतैन डे कहते हैं ।
एक बार मियां हलकान से यह सवाल किसी ने पूछ ही लिया की अपनी मुहब्बत की सारी भड़ास तुम ऐतेहासिक इमारतों पर ही क्यों निकलते हो । अरे भाई, तुम्हारे घर पर भी तो दीवारें हैं कुछ उनको भी दिलों और तीरों से सजाओ । अपने मियां हलकान कम हाज़िर जवाब हैं, बोले… हमारा घर कौन सा मुमताज़ का मखबरा है, जिसे देखने दुनिया आती है । हमें तो अपनी मुहब्बत को वर्ल्ड फेमस करना है । बताइए ऐसे लोगों को कौन समझाए की घरवालों के सामने अपनी मुहब्बत का इज़हार नहीं कर पाते और चले हैं अपनी मुहब्बत को वर्ल्ड फेमस करने ।
काश! मुहब्बत करने वाले समझ पाते की मुहब्बत का मज़ा बनाने में होता है मिटाने में नहीं । मुहब्बत के लिए तो लोग सब कुछ कुर्बान कर देते हैं । क्या हम अपनी मुहब्बत महज़ अमूल्य ऐतेहासिक धरोहरों को ख़राब करके ही जता सकते हैं । सच्ची मुहब्बत है तो एक पौधा अपनी मुहब्बत के नाम का लगा के देखो तुम्हारा प्यार भी अमर हो जाएगा ।







लेखक- संजीव जयसवाल ‘संजय’

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