Tuesday, May 25, 2010

चीन बिना चैन कहाँ

           ट्रेन  रुकी  और  वे  मुस्कुराते  हुए  हाथ  जोड़कर  डिब्बे  से  उतरने  के  लिए  लपके .  साथ  चल  रहे  उनके  पीए  ने  बताया  की  सर  अभी  से  हाथ  जोड़कर  एनर्जी बर्बाद  मत  कीजिये .  ट्रेन  स्टेशन  पर  नहीं  अभी  आउटर  पर  खड़ी  है . वे  रेल  को  अनाप-शनाप  बोलते  हुए  वापस  अपनी  बर्थ  पर  बैठ  गए . पीए  ने  फिर  रिमाईंड   कराते    हुए  कहा- सर  प्रधानमंत्री  जी  ने  आपको  कल  ही  लताड़ा  है  की  दूसरे  मंत्रालयों  में  हस्तछेप  न  करें  इसलिए  आप  अपना  पर्यावरण  संतुलन  बनाये  रखें  और  रेल  मंत्रालय  पर  कमेन्ट  करने  से  बचें . क्या  पाता  कौन  चुगल्बाज़  दायें-बाएं  खड़ा  हो  और  आप  फिर  लपेटे  में  आ  जाएँ . वैसे   ही  आपकी  कुर्सी  हिल  रही  है .

         उधर  प्लेट्फौर्म   नंबर  1 पर  कार्यकर्ताओं  और  शुभचिंतकों  का  हुजूम  उनके  स्वागत  के  रिहर्सल  में  जुटा  पड़ा  था . 1 बहुत  बड़े  बैनर  पर  लिखा  था  कि  प्रधानमंत्री  की  फटकार  के  बाद  प्रथम  बार  नगर  आगमन  पर  आपका  हार्दिक  अभिनन्दन  है .

          आखिर  कुछ  देर  बाद  प्रश्नगत  ट्रेन  प्लेट्फौर्म  पर  आ  लगी . तमाम  जिंदाबाद  वाले  नारों  के  बीच  कुछ  मुर्दाबाद  और  अमर  रहने  वाले  भी  नारे  भी  अपना  अस्तित्व  बचा  रहे  थे . वे  विजयी  मुद्रा  में  कार्यकर्ताओं  के  हुजूम  में  डूब  गए . उनके  पीए  को  कार्यकर्ताओं  के  धक्कों  ने  1 बार  फिर  आउटर  पर  लाकर  खड़ा  कर  दिया . वे  फूलकर  कुप्पा  हो  गए . 1 फटकार  से  इतनी  जय-जयकार . वाह! मैं  सदके  जावां . पहले  पता  होता  कि  फटकार  भी  लोकप्रियता  देती  है, तो  अब  तक  इसकी  सेंचुरी  बना  चुका  होता . प्रभु  तेरी  लीला  अपरम्पार  है .

        इसी  भीड़  में  खड़े  हमारे  मित्र  वेन्क्ट्गुरु  नेताजी  के  इस  अदभुत  सौभाग्य  पर  आश्चर्यचकित  थे . हमने  कहा  गुरु  हक्का-बक्का  क्यों  हो ? अरे, आजकल  जो  दिखता   है  वही  बिकता  है . फिर  नेताजी  तो  पीएम  द्वारा  फटकारे  गए  हैं . ये  उपलब्धि  कम  है  क्या . देखना  इनका  भविष्य  अब  उज्जवल  होता  जायेगा . अरे, महाकवि  टीडी   गोस्वामी   भी  यदि  रत्नावली  कि  फटकार  न  पाते  तो  वो  रामचरित  मानस  से  हाथ  धो  बैठते . वेन्क्ट्गुरु  बोले- कुछ  भी  हो  पर  नेताजी  कि  चाइना  विवेचना  खास  गलत  नहीं  थे . देखा  जाये  तो  सचमुच  हम  चीन  के  बिना  अधूरे  हैं .

        अब  देकिये  न ! हमारा  कूलर  भारतीय  है, पर  मोटर  चाइनीज़  है, दावत  इंडियन  है  पर  चाउमीन  चाइनीज़  है . बिजली  भारत  कि  है  पर  सीएफल    चाइनीज़  है, दलाईलामा  हमारे  यहाँ  हैं, पर  उनकी  नाक  में  दम  चाइनीज़  है . हम  चाइनीज़  चेकर  खेलते  हैं . यहाँ  तक  कि  हम  ‘चाईनागेट’ और  ‘चांदनी  चौक  तो  चाइना’ बनाकर  चीन  जीते  हैं . हम  लाख  गायें-बजाएं  कि  ‘चीने  कम’ पर  वास्तव  में  चीने  है  बहुत  ज्यादा .


लेखक- मुकुल  महान       
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