Sunday, May 30, 2010
Tuesday, May 25, 2010
चीन बिना चैन कहाँ
ट्रेन रुकी और वे मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर डिब्बे से उतरने के लिए लपके . साथ चल रहे उनके पीए ने बताया की सर अभी से हाथ जोड़कर एनर्जी बर्बाद मत कीजिये . ट्रेन स्टेशन पर नहीं अभी आउटर पर खड़ी है . वे रेल को अनाप-शनाप बोलते हुए वापस अपनी बर्थ पर बैठ गए . पीए ने फिर रिमाईंड कराते हुए कहा- सर प्रधानमंत्री जी ने आपको कल ही लताड़ा है की दूसरे मंत्रालयों में हस्तछेप न करें इसलिए आप अपना पर्यावरण संतुलन बनाये रखें और रेल मंत्रालय पर कमेन्ट करने से बचें . क्या पाता कौन चुगल्बाज़ दायें-बाएं खड़ा हो और आप फिर लपेटे में आ जाएँ . वैसे ही आपकी कुर्सी हिल रही है .
उधर प्लेट्फौर्म नंबर 1 पर कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों का हुजूम उनके स्वागत के रिहर्सल में जुटा पड़ा था . 1 बहुत बड़े बैनर पर लिखा था कि प्रधानमंत्री की फटकार के बाद प्रथम बार नगर आगमन पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है .
आखिर कुछ देर बाद प्रश्नगत ट्रेन प्लेट्फौर्म पर आ लगी . तमाम जिंदाबाद वाले नारों के बीच कुछ मुर्दाबाद और अमर रहने वाले भी नारे भी अपना अस्तित्व बचा रहे थे . वे विजयी मुद्रा में कार्यकर्ताओं के हुजूम में डूब गए . उनके पीए को कार्यकर्ताओं के धक्कों ने 1 बार फिर आउटर पर लाकर खड़ा कर दिया . वे फूलकर कुप्पा हो गए . 1 फटकार से इतनी जय-जयकार . वाह! मैं सदके जावां . पहले पता होता कि फटकार भी लोकप्रियता देती है, तो अब तक इसकी सेंचुरी बना चुका होता . प्रभु तेरी लीला अपरम्पार है .
इसी भीड़ में खड़े हमारे मित्र वेन्क्ट्गुरु नेताजी के इस अदभुत सौभाग्य पर आश्चर्यचकित थे . हमने कहा गुरु हक्का-बक्का क्यों हो ? अरे, आजकल जो दिखता है वही बिकता है . फिर नेताजी तो पीएम द्वारा फटकारे गए हैं . ये उपलब्धि कम है क्या . देखना इनका भविष्य अब उज्जवल होता जायेगा . अरे, महाकवि टीडी गोस्वामी भी यदि रत्नावली कि फटकार न पाते तो वो रामचरित मानस से हाथ धो बैठते . वेन्क्ट्गुरु बोले- कुछ भी हो पर नेताजी कि चाइना विवेचना खास गलत नहीं थे . देखा जाये तो सचमुच हम चीन के बिना अधूरे हैं .
अब देकिये न ! हमारा कूलर भारतीय है, पर मोटर चाइनीज़ है, दावत इंडियन है पर चाउमीन चाइनीज़ है . बिजली भारत कि है पर सीएफल चाइनीज़ है, दलाईलामा हमारे यहाँ हैं, पर उनकी नाक में दम चाइनीज़ है . हम चाइनीज़ चेकर खेलते हैं . यहाँ तक कि हम ‘चाईनागेट’ और ‘चांदनी चौक तो चाइना’ बनाकर चीन जीते हैं . हम लाख गायें-बजाएं कि ‘चीने कम’ पर वास्तव में चीने है बहुत ज्यादा .
लेखक- मुकुल महान
Monday, May 24, 2010
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