Thursday, November 12, 2009

हवा में नाश्ता हवा… हवा…

खूबचंद ने अपना बोर्डिंग पास लिया और काउंटर के पीछे से खूबसूरत मुस्कुराता हुआ ‘विश उ प्लीजेंट फ़्लैट ’ का मीठा स्वर प्राप्त किया । बैग हाथ में लेकर चल तो दिए लेकिन उस मुस्कान से बहार नहीं निकल पाये । इतनी प्लीजेंट स्माइल की आदमी बिना हवाई जहाज़ के उड़ने लगे । मुस्कुराहटों पर ज़िन्दगी गुज़ार देने वाली परम्परा के देश के वासी खूबचंद आज बहुत इम्प्रेस थे । पहली बार हवाई जहाज़ में बैठने का सुखद योग मिला था ।

किसी तरह पुलिस वालों की तलाशी से निकलकर आगे बढ़े ।
सिक्यूरिटी चेक के नाम से औकात जान लेने वाली सुरक्षा-व्यवस्था के बाद आगे बढ़कर एक कुर्सी पर बैठे खूबचंद लोगों की बताई बैटन से अपने को खुश करने में जुट गए । बताया गया था की सुंदर-सुंदर परी जैसी लड़कियां अपने हाथों से चाय-नाश्ता सर्व करती हैं । मनुहार करके खिलती हैं । बादलों के ऊपर हवा में उड़ते हुए परियों के हाथ अमृतपान कितना सुखद और रोमांचकारी होगा । इसी सपनीली वादी में विचरण करते-करते खूबचंद की आँख लग गई ।


खूबचंद को लगा की कोई अप्सरा बहुत ही मीठी आवाज़ में कह रही हो , ‘एस्क्यूस मी सर आप ही मी. खूबचंद हैं ।’ खूबचंद खुशी के मारे फूल गए और हडबडाकर जग गए । सामने वास्तव में छोटी स्कर्ट पहने , लाल वस्त्रों में अप्सरा थी, ‘सर आपकी फ़ाइनल कॉल हो चुकी है ऊपर चलिए ।’ इतनी सुंदर अप्सरा कहे तो ऊपर चलने में भी कोई हर्ज नहीं है । मंत्रमुग्ध हो पीछे-पीछे चल पड़े । अप्सरा ने जहाज़ में चढ़ा दिया । अच्छा लगा । खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गए । बाहर कुछ कर्मचारी वायुयान में ईंधन भर रहे थे । खूबचंद उनको हे दृष्टी से देखते हुए मन ही मन कह रहे थे - तुम लोग तेल भरो लेकिन अप्सराओं के साथ हम ही उड़ेंगे ।


थोड़ी देर बाद खूबचंद अप्सराओं के साथ वायुयान में बादलों से ऊपर थे । कई अप्सराएँ मुस्कान के साथ कभी आगे की ओर जातीं , कभी पीछे की ओर जातीं । एक अप्सरा ट्रे में पानी की छोटी-छोटी बोतलें लेकर आई । बगल में बैठे बेवक़ूफ़ आदमी ने मन कर दिया पर खूबचंद ने दो बोतलें ले लीं । आसमान में अप्सरा के हाथ का पानी आहा ।


पाँच मिनट बाद दूसरी अप्सरा प्लेटों में कटे हुए सुंदर-सुंदर फल लेकर आ गई । खूबचंद ने स्वर्ग फल अप्सरा के हाथों से ग्रहड़ किए । बगल वाला फिर बेवक़ूफ़ निकला । दस मिनट भी नहीं बीते होंगे की दो अप्सराएँ एक छोटी सी ट्राली को मुस्कुराते हुए ला रहीं हैं । उस पर सुदर-सुंदर पैकेट रखे हुए हैं । खूबचंद उसी को देख रहे थे और वो अप्सरा दूर से इन्हें देखकर मुस्कुरा रही थी । पास आई और बोली- ‘सर, यू वांट ब्रेकफास्ट ।’


खूबचंद तो सब चाह रहे थे जो भी वो अप्सरा लेकर आए । ‘हाँ , हाँ क्यों नहीं ।’ खूबचंद ने जमकर नाश्ता किया । बहुत खुश हुए । वाह, स्वर्ग सा आनंद । खूबचंद आखें बंद करना चाहते थे लेकिन हो ही नहीं रही थीं । कुछ पल बीते होंगे की एक अप्सरा मुस्कुराते हुए खूबचंद के पास आई और बोली- ‘सर, प्लीज़ पेय 750 रुपीज़ ओनली ।’


‘काहे के ?’ खूबचंद अपनी सैदपुरी औकात में आ गिरे । ‘सर जो आपने वाटर , जूस और रिफ्रेशमेंट लिए हैं उनके ।’
‘हमने तो सुना था की सब फ्री में मिलेगा ।’
‘सर वख्त बहुत बदल गया है । जल्दी कीजिये, मुझे अभी पूरे जहाज़ से वसूली करनी है ।’ और अप्सरा के साथ इनके बगल वाला भी मुस्कुरा रहा था ।



लेखक- सर्वेश अस्थाना

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3 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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