ब्रेकिंग न्यूज़ देखते हुए बहुत कुछ ब्रेक हो जाता है मन के भीतर । यह ब्रेक कभी ऑफ़ ब्रेक होता है तो कभी लेग ब्रेक । क्रिकेट की भाषा में कहें तो कभी इनस्विंग होती है तो कभी आउट्स्व्ग । कभी दायें से चोट लगती है तो कभी बाएं से । हादसों की गुगली ही क्लीन बोल्ड मार देती है । ज़िन्दगी की गाड़ी ही जैसे स्पीड बराकर पर आ जाती है । सब कुछ रूक जाता है, थम जाता है जब ब्रेअकिंग न्यूज़ आती है । यह न्यूज़ एक्स्ट्रा प्राउड के साथ दिखाई जाती है । टीवी सेट पर लाल-नीले पट्टी चलती है । यह न्यूज़ प्रायः तबाही के मंज़र पेश करती है । कहीं प्यास से चटकी और दरकी हुए ज़मीन तो कहीं पानी-पानी हुए मुंबई दिखाई देती है । कहीं दुष्यंत कुमार कहते हैं- बाढ़ की संभावनाएं सामने हैं और नदिया के किनारे घर बने हैं ।
कहीं पेट के बल पड़ी नावें नज़र आती हैं, सूखी नदी पर रेत के बादल उध्ते हैं, कहीं कोई अपनी कविता में कह उठता है-
पानी ने रास्ता बदल जो दिया,
वो नदी अब ज़मीन लगती है ।
बिजली -पानी का संकट होता है, ब्रेकिंग न्यूज़ आती है । भूख का तांडव होता है , ब्रेकिंग न्यूज़ आती है । बड़े शान से गुलशन का कारोबार चलता है । दहशत कलर टीवी में और भी ज़्यादा ईस्टमैन कलर में लुभाती है । आम आदमी आँखें फाड़कर देखता है । बीच-बीच में ड्राइंग रूम में चाय-नाश्ता भी चलता रहता है । एनाउंसर मुस्कुराता है या मुस्कुराती है हालाँकि ख़बर फूट-फोटकर रोने वाली होती है । ब्रेकिंग न्यूज़ ब्रेक के बाद जारी रहती है । इधर भूख से बिलबिलाते हुए बच्चे दिखते हैं तो उधर लज़ीज़ खाने की रेसेपी दिखाई जाती है । वनस्पती घी के तालाब में मछली सी तैरती पूठियाँ मुह में पानी लाती हैं ।
कहीं रेल का बजट आता है तो कहीं रेल पटरी से उतर जाती है । राहत सामग्री के पैकेट गैस के गुब्बारों से हवा में उड़ते हैं, आदमी के हाथ नहीं आते हैं । चैनल-चैनल का खेल चलता है । केज़ुअल्तीज़ मनोरंजन का साधन बनती हैं । हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ का तोहफा मिलता है, बस रिमोट का बटन पिटिर-पिटिर करना होता है । बस इतना करने भर से आदमी ठीक से देख पता नहीं और परदे पे मंज़र बदल जाता है । ब्रेकिंग न्यूज़ नर्वस डाउन भी करती है ।
आदमी घबरा जाता है, हालाँकि बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिनका बग़ैर ब्रेकिंग न्यूज़ देखे हुए खाना ही नही पचता । ब्रेकिंग न्यूज़ में बुरी ख़बरों का परसेंटेज ही डोमिनेट करता है । अच्छी ख़बरें मुश्किल से ब्रेकिंग न्यूज़ का गौरव बन पाते हैं । ब्रेकिंग न्यूज़ देखते हुए बहुत कुछ अनदेखा रह जाता है ।
लेखक - यश मालवीय
कहीं पेट के बल पड़ी नावें नज़र आती हैं, सूखी नदी पर रेत के बादल उध्ते हैं, कहीं कोई अपनी कविता में कह उठता है-
पानी ने रास्ता बदल जो दिया,
वो नदी अब ज़मीन लगती है ।
बिजली -पानी का संकट होता है, ब्रेकिंग न्यूज़ आती है । भूख का तांडव होता है , ब्रेकिंग न्यूज़ आती है । बड़े शान से गुलशन का कारोबार चलता है । दहशत कलर टीवी में और भी ज़्यादा ईस्टमैन कलर में लुभाती है । आम आदमी आँखें फाड़कर देखता है । बीच-बीच में ड्राइंग रूम में चाय-नाश्ता भी चलता रहता है । एनाउंसर मुस्कुराता है या मुस्कुराती है हालाँकि ख़बर फूट-फोटकर रोने वाली होती है । ब्रेकिंग न्यूज़ ब्रेक के बाद जारी रहती है । इधर भूख से बिलबिलाते हुए बच्चे दिखते हैं तो उधर लज़ीज़ खाने की रेसेपी दिखाई जाती है । वनस्पती घी के तालाब में मछली सी तैरती पूठियाँ मुह में पानी लाती हैं ।
कहीं रेल का बजट आता है तो कहीं रेल पटरी से उतर जाती है । राहत सामग्री के पैकेट गैस के गुब्बारों से हवा में उड़ते हैं, आदमी के हाथ नहीं आते हैं । चैनल-चैनल का खेल चलता है । केज़ुअल्तीज़ मनोरंजन का साधन बनती हैं । हर चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ का तोहफा मिलता है, बस रिमोट का बटन पिटिर-पिटिर करना होता है । बस इतना करने भर से आदमी ठीक से देख पता नहीं और परदे पे मंज़र बदल जाता है । ब्रेकिंग न्यूज़ नर्वस डाउन भी करती है ।
आदमी घबरा जाता है, हालाँकि बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिनका बग़ैर ब्रेकिंग न्यूज़ देखे हुए खाना ही नही पचता । ब्रेकिंग न्यूज़ में बुरी ख़बरों का परसेंटेज ही डोमिनेट करता है । अच्छी ख़बरें मुश्किल से ब्रेकिंग न्यूज़ का गौरव बन पाते हैं । ब्रेकिंग न्यूज़ देखते हुए बहुत कुछ अनदेखा रह जाता है ।
लेखक - यश मालवीय
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