Tuesday, November 03, 2009

सरकारी कवि सम्मलेन

आजकल कवि सम्मलेन का प्रचार -प्रसार है ।
कवि सम्मलेन उद्योग है , व्यापार है ।
और कोई खेती न लहलहाए , लेकिन कवियों की खेती में बहार है ।
हालाँकि उसमें भी काफी खरपतवार है ।
यह अलग बात है की अभी तक यह इंडस्ट्री उद्योगपतियों और फिल्मी कलाकारों की नज़रों में नहीं आई
है
तभी आईपील की तरह कवियों की कोई आईपील (इंडियन पोयटिक लीग ) नही बन पाई है ।
वरना हर कवि सम्मलेन में कुछ गिने-चुने, नमी- गिरामी कवि ही नज़र आते ।
छुटभय्ये कवि तो मौका ही नही पाते ।

फिर भी इस इंडस्ट्री की हालत बहुत अच्छी नहीं है ।
आजकल यह ठेकेदारों के नज़रों में आ गई है ।
इनमे से अधिकांश नॉन - पोअत्ट्स हैं, जो कवि श्रेरीं में तो नहीं आते हैं , फिर भी सारे देश में संयोजक के रूप में जाने जाते हैं ।
ऐसे कुछ ठेकेदार जो ठोढी बहुत तुकबंदी भी जानते हैं, अपने आप को सबसे बड़ा कवि मानते हैं ।
अगर इनमें से कुछ पत्रकार भी हुए तो बड़े -बड़े सरकारी अधिकारी भी इन्हे अच्छी तरह पहचानते हैं ।
और यह सरकारी कवि सम्मेलनों का संयोजन अपना पहला हक़ मानते हैं ।
आयोजक भी बेचारा अच्छी कवरेज के लालच में इनसे ही संयोजन करवाता है ।
इसीलिये इन कार्यक्रमों में छुटभय्ये कवियों को मौका नहीं प्राप्त होता है ।

फिर भी एक युवा कवि महोदय डीऍम के पिए से रिश्तेदारी की वजह से एक सरकारी कवि सम्मलेन का संयोजन पा गए ।
यह खुशखबरी लेकर मेरे पास आ गए ।
कई कवियों के बारे में मुझसे डिस्कस किया । उनका नम्बर लिया ।
मैंने भी उन्हें हर तरह से सहयोग का आश्वासन दिया ।
अगले सप्ताह वे मुझसे फिर टकराए । बहुत उदास नज़र आए ।
मैंने पूछा , भाई इस उदासी की वजह क्या है ?
क्या आपका कवि सम्मलेन किसी और ने झटक लिया है ?
वे बोले नही , कार्यक्रम तो अभी मैं ही करवा रहा हूँ ।
पर यह समझिये की बस सरकारी ज़िम्मेदारी निभा रहा हूँ ।
मैंने कहा , जब आप ही करवा रहे हैं तो इतना उदास क्यो नज़र आ रहे हैं ।
बताइए किसको -किसको बुलवा रहे हैं ।

वे बोले - पाँच पत्रकार हैं । पाँच डीऍम साहब के रिश्तेदार हैं ।
पाँच एसडी ऍम साहब के रिश्तेदार हैं । पाँच नाम मंत्री जी ने भिजवाए हैं ।
पाँच विधायक जी की चिट्ठी लेकर आए हैं । पाँच नाम सी. ई. ओ. साहब ने दिए हैं ।
पाँच के लिए मुहल्ले के दरोगा जी का दबाव है । अभी पाँच नाम और आने हैं ।
क्योंकि कुल चालीस कवि ही बुलवाए जाने हैं ।
अब अगर कोई और सिफारिश नही आई तो आप को भी बुलवाऊंगा ।
पर अगर कहीं कुछ सिफारिशी नाम और आ गए तो शायद मैं भी कविता नहीं पढ़ पाऊँगा ।
इतना कहते -कहते उनका गला भर आया । अब तो आप समझ गए होंगे सरकारी कवि सम्मलेन की माया ।

लेख़क - डॉ . कमलेश दिवेदी
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